जैसे ही संवेदी आवेगों की संख्या और बारम्बारता बढ़ती है, प्रेरक आवेग प्रतिवर्त क्रिया के रूप में मूत्राशय की डीट्रसर पेशी (detrusor muscle) का संकुचन तथा आतंरिक संकोचिनी पेशी का शिथिलन कर देते हैं, इससे आतंरिक मूत्रमार्गीय छिद्र खुल जाता है लेकिन बाह्य संकोचिनी पेशी का शिथिल होना अर्थात बाह्य मूत्रमार्गीय छिद्र का खुलना इच्छा पर निर्भर करता है।